या ब्लॉगचा उद्देश एकाच ठिकाणी सर्व प्रकारच्या उपयुक्त आणि महत्वपूर्ण माहिती प्रदान करणे आहे.या ब्लॉगची सामग्री सोशल मीडियामधून घेतली आहे.

Friday, December 14, 2018

सिप्ला



हिन्दुस्तान की पहली दवा कंपनी के संस्थापक थे एक मुस्लिम

जिस दौर में हिंदुस्तान में उद्योगपति शोध-अनुसंधान के बारे में ख्वाब में भी नहीं सोचते थे, उस वक़्त एक मुस्लिम ने एक फार्मास्युटिकल कंपनी की स्थापना की. सन् 1935 में जन्मा सिप्ला देश का पहला फार्मास्युटिकल ब्रांड है. आठ दशक पहले स्व. डॉ. ख्वाजा अब्दुल हमीद ने सिप्ला की स्थापना की थी.

31st अक्टूबर 1898 को जन्मे डॉ ख्वाजा अब्दुल हमीद का जन्म अलीगढ में हुआ. इन्होंने एमएओ कॉलेजिएट (मिन्टो सर्किल) में 1908 में दाखिला लिया. अपनी शिक्षा पूरी कर इन्होंने 1935 में एक दवा बनाने वाली कंपनी की शुरूवात की जिसे ‘केमिकल इंडस्ट्रियल एंड फार्मास्यूटिकल लेबोरेटरी विद द एक्रोनिम’ का नाम दिया गया. इसी का लघु नामकरण हुआ सिप्ला. इस कंपनी की शुरूआत 2 लाख की रक़म के साथ की गयी.

सिप्ला ने द्वितीय विश्व युद्ध में अच्छी और बड़ी विदेशी एमएनसी कम्पनियों को टक्कर देते हुए इन कम्पनियों की दवाओं से बेहतर और सस्ती दवाइयां बना कर उपलब्ध करवाई. इसी के साथ सिप्ला ने उस समय दो बहुत महत्वपूर्ण खोज पूर्ण की जिसमें पहली थी :-
निकाटिनिक एसिड डाईएथिथाइलामाएड जिसका जैविक नाम कोरामाईन है, का संश्लेषण का विकल्प ढूंढ निकाला जिसका प्रयोग कार्डियो-रेस्पिरेटरी स्टिम्युलेंट (हृदय सांस उत्तेजक) के तौर पर किया जाता है.

और दूसरी उपलब्धि थी व्यापारीकरण सरपेनिड का जो रौवोल्फिया सरपेनटाइन नामक वनस्पति का मूल तत्व है. यह एलोपैथी इलाज में पहला हर्बल उपाय था जिसको उच्च रक्तचाप के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है.

यह एक शानदार खोज रही और इस खोज ने सिप्ला को विश्व फार्मास्यूटिकल समाज में प्रसिद्ध कर दिया. 1944 के बाद फिर इस कंपनी ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

डॉ ख्वाजा अब्दुल हमीद के बड़े बेटे युसूफ हमीद जो आर्गेनिक केमिस्ट्री में पीएचडी हैं, ने 1960 में सिप्ला का दारोमदार संभाला. युसूफ हमीद ने रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में अफसर इन चार्ज के तौर पर कंपनी ज्वाइन की. युसूफ हमीद ने अपना ज़्यादातर समय एड्स, क्षय रोग और श्वास रोग की दवा बनाने में लगाया लगाया है.

इन्हे अपनी ही कंपनी में काम करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी. कंपनी ज्वाइन करने से पहले उन्हे सरकार से इसकी इजाज़त लेनी पड़ी यह ब्रिटिश राज के समय की बात है. उन्हे शुरूआती समय में 1500 रुपए पर काम शुरू किया उनको पहली तनख्वाह एक साल के बाद मिली थी.
उन्होंने भारतीय पेटेंट कानून में बदलाव करने की शुरूआत की और इसके अंतर्गत उन्होंने 1961 में इंडियन ड्रग मैन्युफैकचरर्स एसोसिएशन का गठन किया और 1972 में यह प्रयास सफल हुआ और भारतीय फार्मा उद्योग को कानूनन आज़ादी मिल गई वह दवा बनाने और बेचने की जिनकी देश में आवश्यकता हो.

युसूफ हमीद की अगवाई में ही सिप्ला को आज ह्यूमनिटेरीयन फार्मास्यूटिकल कंपनी के नाम से भी जाना जाने लगा क्योंकि वे सदा कहते हैं कि उन्हे उन रोगों से पैसे नहीं बनाने जिन से दुनिया उखड़ जाती है.
आज सिप्ला भारत की मल्टीनेशनल फार्मास्यूटिकल एंड बायोटेक्नोलॉजी कंपनी है और दुनिया के करीब 170 देशों में अपनी दवा बेचने के लिए तत्पर है.

1. यूएस और यूरोप के बाहर सिप्ला ही आज एकमात्र ऐसी कंपनी है जिसने सीएफसी फ्री इन्हेलर्स शुरू किए.

2. एक ऐसी तकनीक का प्रारंभ किया जिसमें बिना हाथ लगाए, बिना दर्द के, बिना किसी हानिकारक किरणों के इस्तेमाल से भी वक्ष की जांच हो सकती है जिससे वक्ष के कैंसर का पता लगाया जा सकता है इसे नो टच ब्रैस्ट स्कैन (एनटीबीसी) कहते हैं.

3 2009 में सिप्ला ने इन्फ्लुएंजा के इलाज के लिए भारतीय बाजार के लिए एंटी-फ्लू ड्रग्स का जेनेरिक वर्शन एच1 एन1 बनाया.

आज सिप्ला का नाम देश और दुनिया में छाया हुआ है. आज़ादी के पहले से लेकर आज आज़ादी के इतने साल बाद तक भी सिप्ला देश को बीमारियों से आज़ाद करने की अपनी मुहिम को जी जान से मुकम्मल करने में लगा है. हम गर्व महसूस करते हैं आज डॉ ख्वाजा अब्दुल हमीद और युसूफ हमीद जैसे भारतीयों पर और सिप्ला जैसे संगठन पर नाज़ करते हैं.                                                                   लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि जंगे आजादी से लेकर भारत के विकास में बड़ा योगदान देने वाले टेक्नोप्रिनर डा. ख्वाजा अब्दुल हमीद का भी जन्म दिन है।

डा.ख्वाजा हमीद 31 अक्टूबर को 1898 में ननिहाल अलीगढ़ में पैदा हुए, वहीं से युवावस्था में पढ़ने वितायत गये। वहीं एक क्रान्तिकारी लड़की से विवाह किया और 1928 में भारत आकर कांग्रेस के आंदोलन में शमिल हो गये। 1928 में वे जर्मनी में हिटलर के खिलाफ आंदोलन भी चला रहे थे।

स्वादेश में कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने बहुत से काम किये। इसी दौरान वे भारत के गरीबों के लिए स्स्ती दवाओं के अनुसंघान में जुट गये। 1935 में ख्वाजा हमीद ने केमिकल इंड्रस्ट्रीज एंड फार्मास्यूटिकल (CIPLA) कम्पनी की नींव डाली।1937 में जब सिप्ला का पहला प्रोडक्ट मार्केट में पहुंचा तो विश्व मीडिया ने भारतीय प्रतिभा की जम कर तारीफ की।

1941 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय उन्होंने सस्ती जीवन रक्षक दवाओं का उत्पाद शुरू किया। 1944 में उन्होंने हाईपर टेंशन की दवा बनाई। इसके बावजूद भी उन्होंने कांग्रेस का दामन नही छोड़ा और कांग्रेस के हर सम्मेलन व अधिवेशन को अपली सेवायें देते रहे।

आजादी के बाद भी उन्होंने कोई लाभ का पद नहीं लिया। बस भारत में सस्ती दवाइयों के अनुसंघान मेंं लगे रहे। 1972 में उनकी मौत हुई। मौत से पहले उन्होंने भारत में पहली बार एम्पीसिलिन लांच किया। डा. ख्वाजा हमीद ने भारत में वैज्ञानिक खेती के लिए मेडिको प्लांट विकसित करने के उद्देश्य से   बेंगलुरू में एग्रीकल्चर रिसर्च डिवीजन की स्थापना कर देश को बड़ी सौगात दी।
 इस दौरान उन्हें भारत और विश्व के कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी कम्पनी सिप्ला आज भी है। सिप्ला आज भारत के अमीरों की शीर्ष सूची में शामिल हैं। उनके परिजन आज भी मानवता के क्षे़त्र में लगे हैं। गत वर्षों में सिप्ला ने कैंसर और एड्स के लिए गुणवत्ता परक व सस्ती दवाएं बना कर विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया है।

No comments:

Post a Comment