सुविख्यात पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम जी ने *मायके* पर क्या खूब लिखा है:
आज उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन्
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रिश्ते पुराने होते हैं
पर "मायका" पुराना नही होता
जब भी जाओ .....
अलाय बलायें टल जाये
यह दुआयें मांगी जाती हैं
यहां वहां बचपन के कतरे बिखरे होते है
कही हंसी कही खुशी कही आंसू सिमटे होते हैं
बचपन का गिलास....कटोरी ....
खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं
अलबम की तस्वीरें
कई किस्से याद दिला देते हैं
सामान कितना भी समेटू
कुछ ना कुछ छूट जाता है
सब ध्यान से रख लेना
हिदायत पिता की ....
कैसे कहूं सामान तो नही
पर दिल का एक हिस्सा यही छूट जाता है
आते वक्त माँ, आँचल मेवों से भर देती हैं
खुश रहना कह कर अपने आँचल मे भर लेती है ....
आ जाती हूं मुस्करा कर मैं भी
कुछ ना कुछ छोड कर अपना
रिश्ते पुराने होते हैं
जाने क्योँ मायका पुराना नही होता
उस देहरी को छोडना हर बार ....आसान नही होता।
- अमृता प्रीतम
आज उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन्
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रिश्ते पुराने होते हैं
पर "मायका" पुराना नही होता
जब भी जाओ .....
अलाय बलायें टल जाये
यह दुआयें मांगी जाती हैं
यहां वहां बचपन के कतरे बिखरे होते है
कही हंसी कही खुशी कही आंसू सिमटे होते हैं
बचपन का गिलास....कटोरी ....
खाने का स्वाद बढ़ा देते हैं
अलबम की तस्वीरें
कई किस्से याद दिला देते हैं
सामान कितना भी समेटू
कुछ ना कुछ छूट जाता है
सब ध्यान से रख लेना
हिदायत पिता की ....
कैसे कहूं सामान तो नही
पर दिल का एक हिस्सा यही छूट जाता है
आते वक्त माँ, आँचल मेवों से भर देती हैं
खुश रहना कह कर अपने आँचल मे भर लेती है ....
आ जाती हूं मुस्करा कर मैं भी
कुछ ना कुछ छोड कर अपना
रिश्ते पुराने होते हैं
जाने क्योँ मायका पुराना नही होता
उस देहरी को छोडना हर बार ....आसान नही होता।
- अमृता प्रीतम
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